हरवंश राय बच्चन की कविता

 


 


बन्द रहेंगे मंदिर मस्ज़िद,


खुली रहेंगी मधुशाला।
ये कैसे महामारी है,
सोच रहा ऊपरवाला।।


नशा मुक्त हो जाता भारत
तो कैसे चलती मधुशाला
व्यवसाय रुका है उन गरीबों का,
 जो नोट की जपते थे माला।।


नहीं मिल रहा राशन पानी,
मगर मिलेगी मधुशाला।
भाड़ में जाए जनता बेचारी,
दर्द में है पीने वाला।।


आपत्ति नहीं जताओ कोई,
खुलने दो ये मधुशाला।
कोराना मुक्त होगा भारत,
जब ठेके पर चलेंगे त्रिशूल और भाला।।


मेरी विनती है तुम सब से,
गर जाए कोई मधुशाला।
वापिस ना आने दो उसको,
तुम बंद करो घर का ताला।।


दुनिया है बरबाद,
और इन्हे चाहिए मधुशाला।
घर में ही रह लो पागल लोगो,
ना बचा पाएगा वो रखवाला।।


मंदिर मस्जिद बंद पड़े हैं,
मगर खुलेंगी मधुशाला।
ये कैसे महामारी है,
सोच रहा ऊपर वाला।।
                        
                                  आनन्द शुक्ला