हास्य कविता :- परीक्षा का बुखार
इम्तहान का चढ़ा हुआ है ,कैसा हाय बुखार ।

पढ़ना पड़ता रैन दिवस ही ,राहत किसी न वार ।

 

मम्मी पापा इस चिंता में ,नम्बर आये और ।

पढ़लो पढ़लो का ही घर में ,रोज मचाते शोर ।

फेल नहीं हो जाये मुन्नी ,हरदम करे विचार ।

पढ़ना पड़ता रैन दिवस ही ,राहत किसी न वार ।

 

सर का दर्द बनी  मम्मी ही ,लेकर झंडू बाम ।

आगे पीछे मेरे दौड़े ,पल भर नहिं आराम ।

राई ,मिर्च से नज़र उतारे ,पेपर में हर बार ।

पढ़ना पड़ता रैन दिवस ही ,राहत किसी न वार ।

 

 

पूजा अब पहले से ज्यादा ,मम्मी करती रोज ।

नए नए पकवान खिलाती ,प्रभु की हर दिन मौज ।

भारी भीड़ बढ़ी मंदिर में ,बिना किसी त्यौहार ।

पढ़ना पड़ता रैन दिवस ही ,राहत किसी न वार ।।

 

 

इम्तेहान का काश कोई ,करदे काम तमाम ।

चैन छीनकर हम बच्चों का ,करदी नींद हराम ।

जी करता जोगिन बन जाऊं ,छोड़ चलूँ  घर- बार ।

पढ़ना पड़ता रैन दिवस ही ,राहत किसी न वार ।

 

 


 

प्रस्तुति:- युवा गौरव न्यूज़ 

 कवि रीना गोयल

सरस्वती नगर, हरियाणा