इम्तहान का चढ़ा हुआ है ,कैसा हाय बुखार ।
पढ़ना पड़ता रैन दिवस ही ,राहत किसी न वार ।
मम्मी पापा इस चिंता में ,नम्बर आये और ।
पढ़लो पढ़लो का ही घर में ,रोज मचाते शोर ।
फेल नहीं हो जाये मुन्नी ,हरदम करे विचार ।
पढ़ना पड़ता रैन दिवस ही ,राहत किसी न वार ।
सर का दर्द बनी मम्मी ही ,लेकर झंडू बाम ।
आगे पीछे मेरे दौड़े ,पल भर नहिं आराम ।
राई ,मिर्च से नज़र उतारे ,पेपर में हर बार ।
पढ़ना पड़ता रैन दिवस ही ,राहत किसी न वार ।
पूजा अब पहले से ज्यादा ,मम्मी करती रोज ।
नए नए पकवान खिलाती ,प्रभु की हर दिन मौज ।
भारी भीड़ बढ़ी मंदिर में ,बिना किसी त्यौहार ।
पढ़ना पड़ता रैन दिवस ही ,राहत किसी न वार ।।
इम्तेहान का काश कोई ,करदे काम तमाम ।
चैन छीनकर हम बच्चों का ,करदी नींद हराम ।
जी करता जोगिन बन जाऊं ,छोड़ चलूँ घर- बार ।
पढ़ना पड़ता रैन दिवस ही ,राहत किसी न वार ।
प्रस्तुति:- युवा गौरव न्यूज़
कवि रीना गोयल
सरस्वती नगर, हरियाणा